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बीकानेर के जगमोहन सक्सेना ने विक्रम लेंडर ढूंड निकाला

बीकानेर के जग मोहन सक्सेना द्वारा चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव की अथाह गहराई में विक्रम लेंडर ढ़ूण्ढ़ने का दावा किया गया है।

सभी निराशावाद में ज्ञान है, लेकिन यह बाँझ ज्ञान है। सभी आशावाद में पागलपन है, लेकिन यह रचनात्मक पागलपन है। आशावाद के साथ दृढ़ संकल्प और दृढ़ता सफल हो सकती है जहां निराशावादी दृष्टिकोण के साथ ज्ञान और अनुभव विफल हो जाता है।

अंतरिक्ष विज्ञान के रहस्यमय विषय में कोई औपचारिक डिग्री या अनुभव ना रखने वाले अंतरिक्ष उत्साही जगमोहन ने एक दुर्लभ उपलब्धि हासिल करके इसे साबित कर दिया है। जहां देश विदेश के अन्तरिक्ष दिग्गज विक्रम लेंडर के बारे मैं सटीक तथ्यों को उजागर करने में विफल रहे हैं। वहीं बीकानेर के श्री जग मोहन सक्सेना ने खोए हुए भारतीय चंद्र लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर एक-आकार में ढूंढ़ निकाला है, जो भारी बाधाओं, आशावाद, उत्साह, अतुल्य नींद और काम की सरलता के खिलाफ उनके सरासर दृढ़ संकल्प से जुड़ा है। इसी के चलते श्री सक्सेना के भाई डॉ हरिमोहन ने उन्ही तस्वीरों में रौवर प्रज्ञान को भी चिन्हित किया है।

विक्रम लेंडर

7 सितंबर, 2019 को लैंडिंग के अंतिम चरण के दौरान लैंडर के साथ इसरो मिशन कंट्रोल और चंद्रयान 2 मिशन के चंद्र ऑर्बिटर के असफल संचार के बाद, अनुमान लगाया गया कि अनियंत्रित कठोर लैंडिंग के प्रभाव के कारण लैंडर पूरी तरह से नष्ट हो गया होगा । इस बाबत मीडिया में निर्धारित लैंडिंग साइट से दूर कई किलोमीटर के क्षेत्र में बिखरे हुए लेंडर के मलबे के छोटे टुकड़ों को दर्शाती हुई चंद्रमा सतह की तस्वीर पोस्ट हुई। जिससे चेन्नई के एक तकनीकी विशेषज्ञ श्री शनमुगा सुब्रमण्यम द्वारा लेंडर के मलबे के एक छोटे टुकड़े को उजागर करने का दावा किया गया। जिनका सम्बंधित अन्तरिक्ष शोध संस्थानो द्वारा न तो दावे का खंडन किया गया और न ही इसका सत्यापन किया गया और न ही प्रेस में प्रकाशित समाचारों की बाढ़ को रोकने की कोई कोशिश की गई ।

हालांकि इसरो चीफ के सिवन ने हादसे के अगले ही दिन एक प्रेस बयान दिया कि ऑर्बिटर पर लगे कैमरे द्वारा रात में लैंडर की एक थर्मल छवि ली गई जिससे पता चला है कि लैंडर सही सलामत और साबुत था, लेकिन इसकी किसी भी छवि को समाचार माध्यमों में प्रसारित नहीं किया गया। इस घटना के एक साल बाद भी, चांद पर विक्रम लेंडर की कोई छवि जारी नहीं की जा सकी है। जिससे इस रहस्य का पर्दाफाश अब तक नही हो सका है।

दिलचस्प बात यह है कि विषय मैं संदिग्धता और अस्पष्टता आज भी बरकरार है और कई सवाल अनुत्तरित हैं। अब तक जो कहानी का संस्करण सामने आया है वह एक आम आदमी को आज भी अतार्किक लगता है क्योंकि लैंडर का, मिशन नियंत्रण से चंद्रमा की सतह से केवल 350 मीटर ऊपर संपर्क टूट जता है जैसा कि नासा ने बताया, जो (पृथ्वी की तुलना में केवल 1/6 गुरुत्व होने पर) धातु के बने यान के विघटन का कारण नहीं बन सकता। अत:ऑर्बिटर कैमरा द्वारा लैंडर के छोटे आकार के टुकड़ों को छवि में कैद करना और निर्धारित लैंडिंग साइट से दूर कई वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बिखराव को दर्शाना असम्भव लगता है। यदि यह वास्तव में सच था तो इसरो ऑर्बिटर कैसे एक अंधेरी रात में भी लैंडर की थर्मल छवि ले पाता।

विक्रम लेंडर

समाचारों में प्रचारित कहानी के संस्करणों में इन्ही अस्पष्टता को देखते हुए, एक सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी और अंतरिक्ष उत्साही श्री जग मोहन सक्सेना ने सच्चाई का पता लगाने के लिए अपनी कोशिश जारी की। उन्होंने ऑनलाइन वेबसाइट पर नासा लूनर टोही (एल आरओ) द्वारा पोस्ट की गई चंद्र सतह की हजारों किलोमीटर की विशाल छवियों को खन्गालना शुरू किया। पिक्सल दर पिक्सल ढूंडते हुये आखिर कई दिनों की कड़ी मेहनत के बाद, वह अंत में चंद्र सतह पर अनुसूचित लैंडिंग साइट के नज़दीक एक असामान्य दिखने वाली वस्तु को ढूंडने में सफल हुये। जो चंद्रमा की अन्य दूसरी वस्तुऔ से अलग दिखाई देती थी और जिसके एक मानव निर्मित वस्तु जैसी लगी। जिसे उन्होने सहज रूप से लापता लैंडर की छवि मानते हुये अपनी कोशिश जारी रखी ।

उन्होंने इसरो और नासा के वैज्ञानिकों को तस्वीर को ई मेल व ट्वीट भेज कर अपनी खोज को सत्यापित करने और प्रमाणित करने का अनुरोध किया। इसरो की प्रतिक्रिया अब तक पृतीक्षित है और एल आर ओ नासा के एक वैज्ञानिक मार्क रोबिन्सन ने हालांकि इसका स्पष्ट प्रमाणन नहीं किया, लेकिन इसे सकारात्मक तरीके से लेते हुए सम्बंधित स्थल के छवि के प्रमाणन हेतु लेंडिंग पूर्व व पश्चात की 23 छवियां उपलब्ध करवाई।

अपनी इस खोज से उत्साहित जगमोहन ने अपने भाई डॉ हरि मोहन सक्सेना के साथ विक्रम लेंडर व स्थलकी छवियों को साझा किया। क्योंकि छवियां थोड़ी धुँधली थी अत:डॉ. सक्सेना व प्रियंका द्वारा छवि का परिवर्धन किया गया। जिससे मूल विक्रम लेंडर की छवी से इसका मिलान और सत्यापन किया जा सकना और आसान हो गया।

जिससे वेब पर उपलब्ध लैंडर की तस्वीरों से इन तस्वीरों का मिलान कर उसकी कुछ विशेषताओं को आसानी से पहचाना जा सका। छवियों के मिलने से इसके विक्रम लेंडर होने का का स्पष्ट संकेत मिल गया । जिससे ये साबित हुआ कि न केवल विक्रम लेंडर चंद्रमा पर सही सलामत बरकरार है और साबुत एक आकार में भी है। इसने रोवर को लैंडर के सामने दिखने वाले रैंप के जरिए स्पष्ट रूप में चंद्र सतह पर भी पहुंचाया।

ये निष्कर्ष, स्पष्ट रूप से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में अपने विक्रम लेंडर और रोवर प्रज्ञान के साथ पहुंचने की भारत की सफलता की कहानी बयान करता है । जहां अभी तक कोई भी राष्ट्र पहले नहीं पहुंचा है, इसरो के वैज्ञानिकों की लूनर लैंडर विक्रम को सफलतापूर्वक लैंड करने में बड़ी सफलता मिली है।

हालाँकि प्रेस और मीडिया में प्रचारित किए गए दावे और कहानियां कुछ समय के लिए सभी लोगों को भ्रमित करने में सफल रहीं, लेकिन अन्तत: सच्चाई सामने आई जिसे सामने लाने का श्रेय जगमोहन सक्सेना को जाता है, जिन्होंने विक्रम लैंडर की खोज की । वही रौवर प्रज्ञान को डॉ हरी मोहन ने चिन्हित किया। यध्यपि विक्रम लेंडर की स्पष्ट छवियां अपनी सफलत्ता की कहानी खुद बयान करती हैं। लेकिन इनकी पुष्टि तो इसरो या नासा अथवा अन्य अन्तरिक्ष संस्थान ही कर सकते हैं। जिनको विधिवत सूचित किया गया है।

विक्रम लेंडर व रोवर प्रज्ञान, की इस खोज में आकाश मोहन,डॉ हरी मोहन , प्रियंका आदि का भी महत्वपूर्ण तकनीकी सहयोग रहा है।

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